2023 का G20 शिखर सम्मेलन: भारत का भू-राजनीतिक दृष्टिकोण/2023 G20 Summit: India’s geopolitical perspective

भारत 1 दिसंबर 2022 से G20 की अध्यक्षता की शुरुआत की थी। कोविड-19 महामारी, रूस-यूक्रेन भू-राजनीतिक तनाव (Geopolitical Tensions) और वैश्विक खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों के लंबे समय तक असर के बीच भारत ने एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया है। भारत ने G20 के मंच का इस्तेमाल बहुपक्षवाद (Multilateralism) को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय बातचीत की प्रक्रिया को नया आकार देकर एवं ग्लोबल साउथ (विकासशील देश) की सतत विकास प्राथमिकताओं को आगे ले जाकर भूमंडलीकरण (Globalization) को तेज़ करने में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए किया है।

उस दिन को अब 14 साल बीत चुके हैं, जब दुनिया के बड़े नेता पिट्सबर्ग में इकट्ठा हुए थे और उन्होंने एलान किया था कि G20 ‘अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रधान मंच’ है। उसके बाद के 14 वर्षों के दौरान G20 ने अपने दायरे का विस्तार किया है और साथ ही साथ अधिकार क्षेत्र को भी बढ़ाया है। लेकिन G20 ने, भारत की अध्यक्षता से पहले कभी भी बहुपक्षीय आर्थिक प्रशासन (Multilateral Economic Administration) के लिए एक नया नज़रिया पेश नहीं किया था। ये कोई हैरानी वाली बात नहीं है। पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन उस समय हुआ था, जब दुनिया 2008 के वित्तीय संकट जूझ रही थी। उसका ध्यान सिर्फ़ मुंबई और मोम्बासा से बहुत दूर स्थित सिर्फ एक वित्तीय व्यवस्था को बचाना था। अब जो संगठन आर्थिक संकट से उबरने के लिए बनाया गया हो, उससे ये अपेक्षा की ही नहीं जा सकती कि वो वैश्विक प्रशासन के एक नए नज़रिए को बढ़ावा देगा।

हाल के वर्षों में G20 एक उदासीन मंच बनकर रह गया था, जहाँ राजनेता केवल बातें करने के लिए इकट्ठा हुआ करते थे। G20 के संकट से उबरने के पूर्व अनुभवों को देखते हुए, फरवरी 2022 के बाद से इस बात का जोखिम वाक़ई बहुत बढ़ गया था कि इसे यूक्रेन में युद्ध से निपटने का एक मंच बना दिया जाएगा। नई दिल्ली के शिखर सम्मेलन ने न केवल G20 का रुख़, दोबारा उसकी असली ज़िम्मेदारी की तरफ़ मोड़ा है, बल्कि इस सम्मेलन ने G20 को नया जीवनदान भी दिया है। अब ‘बैंकरों के G20’ की जगह, ‘जनता के G20’ ने ले ली है।

वैश्विक चुनौतियों पर भारत का दृष्टिकोण

आज यदि सभी सदस्यों के बीच आम सहमति बनाकर, सम्मेलन का घोषणापत्र जारी करने के लिए भारत की कामयाबी की तारीफ़ हो रही है, तो वो बिल्कुल उचित ही है। G20 भले ही एक राजनीतिक, भू-राजनीतिक या सुरक्षा संबंधी वार्ता का मंच न हो, लेकिन, फिर भी इस शिखर सम्मेलन से पहले हुई सभी बैठकों से लग रहा था कि इस सम्मेलन में भी यूक्रेन के मसले से मुंह नहीं मोड़ा जा सकेगा। भारत इस चुनौती के लिए तैयार था। भारत के नेतृत्व में सभी देशों को इस बात के लिए राज़ी कर लिया गया कि वो हमें याद दिलाए कि, ‘सभी देशों को दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता भंग करने और संप्रभुता का उल्लंघन करने, और किसी देश के क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा करने की धमकी देने, या ताक़त के बल पर उसे हासिल करने से बाज़ आना चाहिए।’

लेकिन, G20 शिखर सम्मेलन में एक घोषणा पर आम सहमति बनाने से भी बड़ी भारत की उपलब्धि तो ये है कि उसने वैश्विक प्रशासन को अधिक मानवीय बनाया है। जलवायु वित्त से लेकर महिलाओं के नेतृत्व में विकास तक, भारत ने ऐसे मुद्दों को उठाया जिसके लिए न जाने कितने लोग संघर्ष कर रहे हैं, और साथ ही उनके समाधानों की मज़बूती से वकालत भी की है। आज के दौर में जब भू-मंडलीकरण (Globalization) को अपशिष्ट कहकर उसे सिरे से ख़ारिज किया जा रहा है, तो भारत ने बहुपक्षीय सहयोग के उसी माध्यम का इस्तेमाल करते हुए दुनिया के हाशिए पर पड़े तबक़ों की मदद करने की कोशिश की है।

जलवायु वित्त में भारत अपनी पेशकश (offering) विकसित करने की प्रक्रिया में है। जलवायु परिवर्तन के लिए इसका राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund) और राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (National Clean Energy Fund) दोनों ही अनुकूलन और लचीलेपन में सुधार करना चाहते हैं और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराना चाहते हैं।

भारत ने G20 देशों में विशिष्ट क्षेत्रों में महिला नेताओं को सलाह देने और उनकी क्षमता निर्माण के लिए एक ऑनलाइन मंच शुरू करने का भी वादा किया है। यह महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के लिए प्रतिबद्धताओं की एक शृंखला के समर्थन में मुखर रहा है, जिसमें महिलाओं के लिए STEM (Science, Technology, Engineering and Mathematics) में निवेश बढ़ाना, महिला उद्यमिता को बढ़ावा देना और महिलाओं के लिए अधिक सामुदायिक-स्तरीय नेतृत्व और निर्णय लेने की भूमिका सुनिश्चित करना शामिल है।

एक नये सिरे से बहुपक्षीयवाद की ओर: सबका विकास

2023 की दुनिया 2009 की दुनिया से काफी अलग है। पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन के बाद से, हमने एक महामारी, एआई के उदय और परस्पर संबंधित जोखिमों के “बहुसंकट” के बीच जलवायु संकट की बढ़ती स्वीकार्यता का अनुभव किया है जो 2030 तक एक बेहतर दुनिया की दिशा में प्रगति को चुनौती देना जारी रखता है।

इस संदर्भ में, नए सिरे से बहुपक्षीयवाद के लिए भारत का प्रयास ऐसा है जिसका अधिकांश अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने स्वागत किया है – आज की समस्याएं इस तरह के सहयोग को अनिवार्य बनाती हैं। बहुपक्षीयवाद (Multilateralism) के भारत के फॉर्मूले का ब्राज़ील से लेकर मिस्र और दक्षिण अफ्रीका तक उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने स्वागत किया है। इन देशों को यक़ीन है कि बहुपक्षीयवाद को उनकी प्राथमिकताओं वाली दिशा की ओर ले जा सकने के लिए भारत पर भरोसा किया जा सकता है।

जी20 के बाहर भी, भारत अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में तेजी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने और बहुपक्षीय शासन मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न भागीदारों के साथ काम कर रहा है।

बदलते वक़्त ने जो विश्व में नई रूप-रेखा को तैयार किया है और जिसे भारत ने अपनाया है, वो न तो अमेरिका के इशारों पर नाचने वाली है और न ही चीन का ग़ुलाम बनने वाली है। ये ढाँचा कई असंगठित, सबके लिए फ़ायदेमंद और मक़सद पर केंद्रित साझेदारियों वाला है, जो संप्रभु सरकारों के बीच समझौते पर आधारित है। ये समझौते लोकतांत्रिक सिद्धांतों और उन देशों की जनता की ज़रूरतों पर केंद्रित हैं। एक तरह से ये ख़ूबियां, पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत की विदेश नीति के नज़रिए को प्रतिबिंबित करती हैं। पिछले एक दशक के दौरान भारत ने एक ऐसे बहुपक्षीयवाद को आगे बढ़ाया है, जो सीमित जवाबदेही और लचीली साझेदारियों के इर्द-गिर्द खड़ा किया गया है; फिर चाहे क्वाड और I2U2 हो या फिर ब्रिक्स (BRICS) हो।

भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान जताई गई प्रतिबद्धताओं में- जैविक ईंधन से लेकर अंतरराष्ट्रीय विकास बैंकों को सुधारने तक शामिल हैं। इनमें से ये सभी प्रतिबद्धताएं विकासशील देशों के अस्तित्व से जुड़ी अहमियत वाली हैं। और, इन सभी पहलों में भारत या तो उत्प्रेरक या फिर अगुवा रहा है।

एक खंडित दुनिया में बहुपक्षवाद

वैश्विक नेतृत्व को आज उन लोगों के लाभ के लिए विश्व की अर्थव्यवस्था को नया आकार देने का काम करना चाहिए, जो अभी भी भूमंडलीकरण के नए अवतार से लाभ उठाने की आकांक्षा रखते हैं। ख़ुशक़िस्मती से अगले दो साल तक दुनिया के सबसे बड़े बहुपक्षीय समूह (G20) की अध्यक्षता भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका (IBSA) के पास रहेगी और इन देशों ने बहुत उत्साह से एक दूसरे का समर्थन भी किया है। लेकिन, दुनिया में सबसे बड़ी आबादी, विशाल अर्थव्यवस्था और सबसे तेज़ विकास दर की वजह से भारत, इन देशों के बीच अपने इन समकक्षों में अव्वल है। भारत के विशाल भूभाग की वजह से भी इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। ऐसे में नेतृत्व की ज़िम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता। इसीलिए,भारत अपना ये उत्तरदायित्व निभाने के लिए आगे आया है।

लेकिन, दुनिया में सबसे बड़ी आबादी, विशाल अर्थव्यवस्था और सबसे तेज़ विकास दर की वजह से भारत, इन देशों के बीच भी समकक्षों में अव्वल है. भारत के विशाल भूभाग की वजह से भी इसकी अनदेखी कर पाना असंभव है. ऐसे में नेतृत्व की ज़िम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता, भारत अपना ये उत्तरदायित्व निभाने के लिए आगे आया है. भारत महत्वपूर्ण है. और, भारत ने कर दिखाया है. सीधे शब्दों में कहें तो: भारत मायने रखता है।

आज से एक पीढ़ी बाद, दुनिया एक बार फिर बदल चुकी होगी। लेकिन, इस बार वो उभरते भारत की शुक्रगुज़ार होगी। दिल्ली शिखर सम्मेलन के ज़रिए गढ़ी गई दुनिया, जनता पर केंद्रित सिद्धांतों और भरोसे पर आधारित फुर्तीली साझेदारियों वाली होगी। ये ऐसी दुनिया होगी जहाँ मानवता के इतिहास में पहली बार वैश्विक प्रशासन, दुनिया की बहुसंख्यक आबादी की ज़रूरतें पूरी करने की दिशा में आगे बढ़ रहा होगा।

ये विश्व आर्थिक मंच में पहले प्रकाशित हो चुके लेख का अपडेटेड संस्करण है।

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