भारत के संविधान का इतिहास और विकास

संविधान क्या है?
(What is Constitution?)

संविधान नियमों, उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेश होता है, जिसके अनुसार सरकार का संचालन किया जाता है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारित करता है। संविधान राज्य की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थापना करता है, उनकी शक्तियों तथा दायित्वों का सीमांकन एवं जनता तथा राज्य के मध्य संबंधों का विनियमन करता है।
प्रत्येक संविधान, उस देश के आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का दर्पण होता है। संवैधानिक विधि देश की सर्वोच्च विधि होती है तथा सभी अन्य विधियाँ इसी पर आधारित होती हैं। संविधान एक जड़ दस्तावेश नहीं होता, बल्कि यह निरंतर पनपता रहता है। वर्षों से चली आ रही परंपराएँ भी देश के शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं।

संविधान का महत्त्व
(Importance of Constitution)

  • संविधान यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि कानून कौन बनाएगा?
  • यह समाज में शक्ति के मूल वितरण को परिभाषित करता है।
  • यह समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी तथा सरकार का निर्माण कैसे होगा, निर्धारित करता है।
  • यह समाज की आकांक्षाओं एवं लक्ष्यों को अभिव्यक्त करता है एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु उचित परिस्थितियों के निर्माण को सुनिश्चित करता है। (न्यूनतम समन्वय एवं आपसी विश्वास हेतु)
  • भारत का संविधान, राजव्यवस्था के तीन प्रमुख अंगों कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका की स्थापना करता है तथा साथ ही उनकी शक्तियों एवं अधिकारों को परिभाषित करता है।
  • यह राज्य के अंगों के अधिकार को मर्यादित कर उन्हें निरंकुश एवं तानाशाह होने से रोकता है।
  • संविधान एक आइना है जिसमें उस देश के भूत, वर्तमान और भविष्य की झलक दिखाई देती है।
  • संविधान और राजव्यवस्था के अनेक उपादान ब्रिटिश शासन से ग्रहण किए गए हैं, ब्रिटिशों द्वारा समय-समय पर लाए गए अधिनियमों ने भारतीय सरकार और प्रशासन की विधिक रूपरेखा/ढाँचे को तैयार किया है।

  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत पारित अधिनियम
    (Acts Passed Under the British East India Company)

    रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773 (Regulating Act, 1773)

    इस अधिनियम के द्वारा भारत में कंपनी के शासन हेतु पहली बार एक लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया। भारतीय संवैधानिक इतिहास में इसका विशेष महत्त्व यह है क्योंकि इसके द्वारा भारत में कंपनी के प्रशासन पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्राण की शुरुआत हुई। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं-
  • इस अधिनियम द्वारा बंबई तथा मद्रास प्रेसिडेंसी को कलकत्ता प्रेसिडेंसी के अधीन कर दिया गया।
  • कलकत्ता प्रेसिडेंसी में गवर्नर जनरल व चार सदस्यों वाली परिषद के नियंत्राण में सरकार की स्थापना की गई।
  • कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना (1774) की गई, जिसके अंतर्गत बंगाल, बिहार और उड़ीसा शामिल थे। सर एलिजाह इम्पे को इसका प्रथम मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया तथा चेंबर्स, लिमेस्टर एवं हाइड को अन्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
  • भारत के सचिव की पूर्व अनुमति पर गवर्नर जनरल व उसकी परिषद (4 सदस्य) को कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • अब बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेंसियों का ‘गवर्नर जनरल’ कहा जाने लगा।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत बनने वाले बंगाल के प्रथम गवर्नर जनरल ‘लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स’ थे।
  • इस अधिनियम के तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार व भारतीय लोगों से उपहार या रिश्वत लेने को प्रतिबंधित कर दिया गया।
  • कंपनी पर ब्रिटिश निदेशक मंडल यानी कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (कंपनी की गवर्निंग बॉडी) का नियंत्राण बढ़ गया और अब भारत में इसके राजस्व, नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया।
  • इसके अंतर्गत व्यापार की सभी सूचनाएँ क्राउन को देना सुनिश्चित किया गया।

  • पिट्स इंडिया एक्ट 1784

    भारत के संवैधानिक इतिहास में यह अधिनियम कई महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आया।

  • 1784 के इस अधिनियम के अनुसार, ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों को “भारत में ब्रिटिश संपत्ति” कहा जाता था।
  • इस एक्ट के अनुसार, क्राउन एंड कंपनी द्वारा संचालित ब्रिटिश भारत की एक संयुक्त सरकार की स्थापना की गई।
  • सरकार के पास सर्वोच्च शक्ति और अधिकार थे।
  • कंपनी के व्यापारिक और राजनीतिक कार्य अलग-अलग हो गए।
  • पिट्स इंडिया एक्ट 1784 के प्रावधानों के अनुसार वाणिज्यिक (व्यापार) संचालन के लिए एक निदेशक मंडल (Court of Directors) का गठन किया गया और राजनीतिक मामलों के लिए 6 सदस्यीय नियंत्रण बोर्ड नियुक्त किया गया।
  • गवर्नर जनरल की परिषद् को 4 सदस्यों से घटाकर 3 सदस्यों का कर दिया गया।
  • बम्बई और मद्रास में गवर्नर काउंसिल की स्थापना की गई।

  • 1813 का चार्टर एक्ट

  • इससे भारत के साथ व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी का एकाधिकार समाप्त हो गया, यानी भारतीय व्यापार को सभी ब्रिटिश व्यापारियों के लिए खोल दिया गया।
  • इस कानून ने चाय के व्यापार तथा चीन के साथ व्यापार में कंपनी के एकाधिकार को बनाए रखा।
  • इस प्रकार चीन, चाय और अफ़ीम के साथ व्यापार को छोड़कर, कंपनी का वाणिज्यिक एकाधिकार नष्ट हो गया।
  • इस एक्ट ने ईसाई मिशनरियों को भारत के लोगों को ‘प्रबुद्ध’ करने की अनुमति प्रदान की।
  • इस अधिनियम के तहत कंपनी को भारतीयों की शिक्षा में सालाना एक लाख रुपये का निवेश करने का प्रावधान किया गया था।

  • 1833 का चार्टर एक्ट

  • बंगाल का गवर्नर-जनरल भारत का गवर्नर-जनरल बन गया।
  • इस एक्ट के अनुसार लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत के प्रथम गवर्नर-जनरल थे।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी केवल एक प्रशासनिक संस्था के रूप में समाप्त हो गई, यह अब एक वाणिज्यिक संस्था नहीं रही।
  • गवर्नर-जनरल को राजस्व, नागरिक और सैन्य पर पूर्ण नियंत्रण दिया गया था।
  • 1833 का चार्टर अधिनियम भारत में केंद्रीकरण की प्रक्रिया का अंतिम चरण था, यह प्रक्रिया 1773 के विनियमन अधिनियम के साथ शुरू हुई थी।

  • 1853 का चार्टर एक्ट

  • जब यह अधिनियम तब पारित किया गया था, जब लॉर्ड डलहौजी भारत के गवर्नर-जनरल थे।
  • इसने सिविल सेवकों के चयन और भर्ती की एक खुली प्रतियोगिता प्रणाली शुरू की। इस प्रकार अनुबंधित सिविल सेवा को भारतीयों के लिए भी खोल दिया गया। इसके अनुसार, 1854 में मैकाले समिति (भारतीय सिविल सेवा समिति) की नियुक्ति की गई।
  • इस अधिनियम के अनुसार गवर्नर-जनरल के कार्यकारी और विधायी कार्यों को अलग कर दिया गया।
  • इस अधिनियम में विधान परिषद में 6 नए सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान था, 4 सदस्यों की नियुक्ति बंगाल, बॉम्बे, मद्रास और आगरा की अनंतिम सरकारों द्वारा की गई थी।
  • निदेशक मंडल की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई, जिनमें से 6 लोगों को ब्रिटिश क्राउन द्वारा नामित किया जाना था।
  • 1853 के चार्टर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, गवर्नर जनरल की विधान परिषद को केंद्रीय विधान परिषद के रूप में जाना जाने लगा था।
  • केन्द्रीय विधान परिषद एक लघु संसद के रूप में कार्य करने लगी। इसने ब्रिटिश संसद की समान प्रक्रियाओं को अपनाया।

  • संवैधानिक विकास – ब्रिटिश क्राउन के अधीन शासन (1857-1947)

    यह ब्रिटिश क्राउन के तहत संवैधानिक विकास का दूसरा चरण शुरू करता है।


    1858 का भारत सरकार अधिनियम

  • ब्रिटिश संसद द्वारा पारित 1858 के भारत सरकार अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया।
  • शक्तियाँ ब्रिटिश क्राउन को हस्तांतरित कर दी गईं।
  • भारत के राज्य सचिव को पूर्व निदेशक न्यायालय की शक्तियाँ और कर्तव्य दिए गए। उन्होंने भारत के वायसराय के माध्यम से भारतीय प्रशासन को नियंत्रित किया।
  • भारत के राज्य सचिव को भारतीय परिषद द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी। इस परिषद में 15 सदस्य थे। परिषद् एक सलाहकारी संस्था थी।
  • भारत के गवर्नर-जनरल को भारत का वायसराय बनाया गया। लॉर्ड कैनिंग भारत के प्रथम वायसराय थे।

  • 1861 का भारतीय परिषद् अधिनियम

  • वायसराय की विधान परिषद में पहली बार भारतीयों को गैर-सरकारी सदस्य के रूप में नामांकित किया गया।
  • प्रान्तों एवं केन्द्र में विधान परिषदों की स्थापना की गयी।
  • बम्बई और मद्रास प्रांतों की विधायी शक्तियाँ बहाल कर दी गईं।
  • पंजाब, उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत (NWFP), बंगाल प्रांतों में विधान परिषदें शुरू की गईं।

  • 1892 का भारतीय परिषद अधिनियम

  • विधान परिषद का आकार बढ़ाया गया। अतिरिक्त सदस्यों की संख्या केन्द्रीय परिषद में बढ़ाकर कम से कम 10 व अधिकतम 16 कर दी गयी। बम्बई तथा मद्रास की कौंसिल में भी 20 अतिरिक्त सदस्य, उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत व बंगाल की कौंसिल में भी 20 अतिरिक्त सदस्य नियुक्त किए गए।
  • परिषद के सदस्यों को कुछ अधिक अधिकार मिले। वार्षिक बजट पर वाद-विवाद व इससे सम्बन्धित प्रश्न पूछे जा सकते थे, परन्तु मत विभाजन का अधिकार नहीं दिया गया था। अतिरिक्त सदस्यों को बजट से सम्बन्धित विशेष अधिकार था, किन्तु वे पूरक प्रश्न नहीं पूछ सकते थे।
  • पहली बार अप्रत्यक्ष चुनाव शुरू किए गए।
  • प्रतिनिधित्व का सिद्धांत 1892 के भारतीय परिषद अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के अनुसार पेश किया गया था।

  • भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 – मॉर्ले मिंटो सुधार

  • 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम को आमतौर पर मॉर्ले मिंटो सुधार के रूप में जाना जाता है।
  • पहली बार, विधान परिषदों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव की शुरुआत की गई।
  • केंद्रीय विधान परिषद का नाम बदलकर इंपीरियल विधान परिषद कर दिया गया।
  • पृथक निर्वाचन क्षेत्र देकर साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की शुरुआत की गई। यह एक ऐसी व्यवस्था थी जहां सीटें केवल मुसलमानों के लिए आरक्षित थीं और केवल मुसलमानों पर ही मतदान होता था।
  • पहली बार भारतीयों को वायसराय की कार्यकारी परिषद में नियुक्त किया गया। सत्येन्द्र सिन्हा विधि सदस्य थे।

  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 – मोंटागु चेम्सफोर्ड सुधार

  • भारत सरकार अधिनियम, 1919 को मोंटागु चेम्सफोर्ड सुधार के रूप में भी जाना जाता था।
  • पहली बार द्विसदनीय व्यवस्था लागू की गई।
  • प्रान्तीय एवं केन्द्रीय विषय अलग-अलग कर दिये गये।
  • द्वैध शासन व्यवस्था, प्रांतीय विषयों में दोहरी शासन की एक योजना शुरू की गई थी, इसे आरक्षित और हस्तांतरित में विभाजित किया गया था। हस्तांतरित सूची में कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्थानीय सरकार की देखरेख शामिल थी। हस्तांतरित सूची प्रांतीय परिषद के प्रति जवाबदेह मंत्रियों की सरकार को दी गई थी। आरक्षित सूची में संचार, विदेशी मामले, रक्षा; यह हस्तांतरित सूची वायसराय के नियंत्रण में थी।
  • वायसराय की कार्यकारी परिषद में 6 सदस्यों में से 3 भारतीय थे।
  • इस अधिनियम ने पहली बार भारत में लोक सेवा आयोग की स्थापना का प्रावधान किया।
  • सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन, सिखों तक बढ़ाया गया।
  • मताधिकार एक सीमित आबादी को दिया गया था जो उन लोगों पर आधारित था जिनकी कर योग्य आय थी, जिनके पास संपत्ति थी और वे 3000 रुपये का भू-राजस्व अदा करते थे।
  • मोंटागु चेम्सफोर्ड सुधार ने सरकार के कामकाज को देखने के लिए 10 वर्षों के अंत में एक वैधानिक आयोग की स्थापना का प्रावधान किया।

  • भारत सरकार अधिनियम 1935

    यह ब्रिटिश भारत द्वारा शुरू किया गया सबसे लंबा और आखिरी संवैधानिक उपाय था। यह कई गोलमेज सम्मेलनों और साइमन कमीशन की एक रिपोर्ट का परिणाम था।

  • 11 प्रांतों में से 6 प्रांतों (बंगाल, बंबई, मद्रास, असम, बिहार, संयुक्त प्रांत) में द्विसदनीय व्यवस्था लागू की गई।
  • प्रांतों में विधानमंडल का विस्तार किया गया।
  • अधिनियम के अनुसार, शक्तियों को संघीय सूची, प्रांतीय सूची और समवर्ती सूची में विभाजित किया गया था।
  • द्वैध शासन को समाप्त करके प्रांतों में प्रांतीय स्वायत्तता की शुरुआत की गई।
  • केंद्र में द्वैध शासन का प्रावधान किया गया।
  • संघीय न्यायालय, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्थापना के लिए प्रावधान प्रदान किए गए।
  • इसमें प्रांतों और रियासतों को इकाइयों के रूप में मिलाकर अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान था।
  • भारत सरकार अधिनियम 1935 की लंबाई के कारण इसे 2 अलग-अलग अधिनियमों में विभाजित किया गया था।

  • क्रिप्स मिशन – 1942

    1942 में सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में क्रिप्स मिशन भारत भेजा गया। क्रिप्स मिशन द्वारा दिये गये कुछ प्रस्ताव नीचे दिये गये हैं।

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत को डोमिनियन स्टेटस दिया जाएगा।
  • द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद, भारतीय संविधान के निर्माण के लिए भारत में एक निर्वाचित निकाय की स्थापना की जाएगी।
  • यहाँ तक कि भारतीय राज्य भी संविधान-निर्माता निकाय में भाग लेंगे।
  • भारत के लगभग सभी दलों एवं वर्गों ने क्रिप्स मिशन द्वारा दिये गये प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।

  • कैबिनेट मिशन – 1946

    कैबिनेट मिशन योजना के कुछ प्रमुख प्रस्ताव थे

  • भारतीय राज्य और ब्रिटिश प्रांत मिलकर भारत संघ बनाएंगे
  • 389 सदस्यों वाली एक संविधान सभा की स्थापना की जाएगी।
  • प्रमुख राजनीतिक दलों के 14 सदस्य अंतरिम सरकार बनाएंगे।
  • एक प्रतिनिधि संस्था का गठन किया जाएगा जिसे संविधान सभा नाम दिया जाएगा।
  • संविधान बनने तक संविधान सभा डोमिनियन विधानमंडल के रूप में कार्य करेगी।
  • संविधान बनने तक, भारत का प्रशासन भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अनुसार किया जाएगा।

  • माउंटबेटन योजना – भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम – 1947

  • 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत का भारत और पाकिस्तान में विभाजन हो गया।
  • संविधान सभा को पूर्ण विधायी अधिकार प्रदान किये गये।
  • प्रांतों और राज्यों दोनों में सरकारें स्थापित कीं।

  • मुख्य समय-सीमाएँ – स्वतंत्र भारत का संविधान

  • भारत का संविधान संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया था। स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने का कार्य पूरा करने में संविधान सभा को लगभग 3 साल लग गए।
  • संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई।
  • 14 अगस्त 1947 को; समितियों के निर्माण का प्रस्ताव था।
  • प्रारूप समिति की स्थापना 29 अगस्त 1947 को हुई और संविधान सभा ने संविधान लिखने की प्रक्रिया शुरू की।
  • राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने फरवरी 1948 में स्वतंत्र भारत के नए संविधान का मसौदा तैयार किया।
  • संविधान को 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था।
  • 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ, जिससे भारत एक गणतंत्र बन गया।
  • उस दिन, विधानसभा का अस्तित्व समाप्त हो गया और 1952 में एक नई संसद के गठन तक यह भारत की अनंतिम संसद में परिवर्तित हो गई।
  • यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है जिसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं।

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