चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को समेटे है बागपत का सिनौली गांव। सिनौली (Sinauli) ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण एक पुरातात्विक स्थल है क्योंकि जो यहाँ मिला, अब तक कहीं और नहीं मिला।
यह सिनौली है यहाँ मिल चुके हैं मानव कंकाल, रथ, तलवार और ताबूत। चार हजार वर्ष पुरानी सभ्यता को समेटे है अपना यह सिनौली।
डिस्कवरी प्लस पर सिनौली का इतिहास
सिनौली उत्खनन से निकले इतिहास को वर्ष 2021 मे डिस्कवरी प्लस चैनल पर वेब सीरीज ‘सीक्रेट्स आफ सिनौली- डिस्कवरी आफ द सेंचुरी’ में दिखाया जा चुका है। जिसमें फिल्म अभिनेता मनोज बाजपेयी ने कहानी को प्रस्तुत किया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सहयोग से निर्मित यह वृत्तचित्र 4000 से अधिक वर्षों से दबे रहस्यों को उजागर करता है।
“कालः पचति भूतानि, कालः संहारते प्रजाः कालः सुप्तेषु जागर्ति, कालो हि दुरतिक्रमः”
संस्कृत श्लोक स्वीकार करता है कि समय शाश्वत है और कोई भी या कुछ भी समय की प्रक्रिया से बच नहीं सकता है। सिनौली का रहस्य: सदी की खोज इतिहास, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पौराणिक कथाओं का मिश्रण है। भारत एक ऐसा देश है जो अपनी समृद्ध संस्कृति और विविध विरासत के लिए जाना जाता है। सिनौली में इस प्राचीन सभ्यता की खोज एक मनोरम कहानी है जिसे हमारे देश भर में देखने और सुनने की ज़रूरत है। हमारी नवीनतम मूल जाँच हमारे समृद्ध और गौरवशाली इतिहास के बारे में कुछ सबसे महत्वपूर्ण खुलासे करती है। ‘सिनौली का रहस्य: सेंचुरी की खोज’ हमारे दर्शकों को प्रबुद्ध करती है और उन्हें भारतीय इतिहास की उस यात्रा पर ले जाती है, जिसके बारे में पहले कभी नहीं बताया गया है।
सिनौली, भारत में ताम्रपाषाण काल (2000 ईसा पूर्व और 700 ईसा पूर्व के बीच) का सबसे बड़ा क़ब्रगाह बताया जाता है। डॉक्यूमेंट्री, सिनौली में खुदाई के दौरान हुई खोजों पर खूबसूरती से प्रकाश डालते हुए, 4000 साल पुराने रथ, तांबे के औजार और योद्धाओं की शवदाह (अंत्येष्टि) को प्रस्तुत करती है। रथों को तांबे से मढ़ा गया है और माना जाता है कि यह दुनिया में अब तक खोजे गए रथ का सबसे पुराना जीवित भौतिक साक्ष्य है। साथ में, ढालें, धनुष और तीर, भाले, तलवारें, हेलमेट, कुल्हाड़ी और अन्य तांबे के हथियार भी प्राप्त हुए हैं।
तलवारें कब्रग़ाह में क्यों रखी गईं? क्या पश्चिमी देशों ने भारतीय इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा? इन तलवारों और रथों से जुड़े लोग कौन थे? प्राचीन भारत में युद्धों के बारे में कई सिद्धांतों और सवालों को उठाते हुए, ‘सीक्रेट्स ऑफ सिनौली: डिस्कवरी ऑफ द सेंचुरी’ में विशेषज्ञ शामिल हैं, जिनमें से कुछ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से हैं, क्योंकि इतिहासकार और पुरातत्वविद् पौराणिक कथाओं की ऐतिहासिकता पर दोबारा गौर करते हैं और इतिहास की समयरेखा की फिर से कल्पना करते हैं। सिनौली में नवीनतम तकनीक का उपयोग करते हुए यह महत्वपूर्ण खोज, हमारे देश के इतिहास के बारे में कई गलतफहमियों को दूर करेगी।
सिनौली क्यों है इतना ख़ास ?
सिनौली उत्खनन में मिले प्रमाण इतिहास को बदल देने का माद्दा रखते हैं। यहाँ की जमीन से निकले लगभग चार हजार वर्ष पुराने रथ, तलवार और ताबूत पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के पूर्व सुपरीटेंडेंट आर्कियोलाजिस्ट और इतिहासविद् कौशल किशोर शर्मा कहते हैं कि सिनौली में हमें वो मिला, जो अब तक भारत में कभी-कहीं नहीं मिला। अब लोगों की जुबान पर सिनौली का नाम चढ़ गया है।
सिनौली से सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कब्रें पाई गई थीं। बागपत जनपद की बड़ौत तहसील में सिनौली स्थित है। 2005 में खोजा गया सिनौली गाँव भारत में सिंधु घाटी सभ्यता स्थलों की सूची में सबसे नवीन अद्यतन है। यहाँ के तमाम अवशेष 3800 से 4000 वर्ष पुराने हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल राखीगढ़ी, कालीबंगा और लोथल में ख़ुदाई के दौरान कंकाल तो मिल चुके हैं किंतु रथ पहली बार मिला है।
कब चर्चा में आया सिनौली?
यमुना नदी से लगभग आठ किलोमीटर दूर स्थित बागपत जिले का सिनौली गांव एक शांत-सामान्य हरियाली संपन्न गांव है। लगभग 4000 बीघे में फैले इस गांव की चर्चा सबसे पहले 2005 में हुई थी। उन दिनों गांव के ही प्रभाष शर्मा को अपने खेत में प्राचीन वस्तुएँ मिली थीं। इसके बाद ही ASI को उत्खनन में यहाँ से 106 मानव कंकाल प्राप्त हुए। कार्बन डेटिंग में सभी तीन हजार वर्ष से भी पुराने बताए गए। दूसरे चरण में 2017 और तीसरे चरण में सन 2019 में हुई खोदाई में एक से बढ़कर एक वस्तुएँ निकलीं। जब उन्हें पता चला कि उनकी जमीन के नीचे कई सभ्यताएँ दफन हैं, तब से यहाँ के ग्रामीण भी अब अपने को महाभारत काल से जोड़कर देखने लगे हैं।
मिश्रित आबादी वाले गांव की आबादी लगभग 11000 है। बड़ी आबादी जाट समाज की है। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण हैं। इनके अलावा दलित और मुस्लिम समुदाय के लोग भी भाईचारे से रहते हैं। साफ-सुथरे ढंग से जीवन यापन कर रहे इस गांव के लोग खेती-किसानी पर ही आश्रित हैं। कुछ लोग सरकारी नौकरियों में हैं, जबकि रोजाना लगभग हजार लोग बड़ौत और आसपास के कस्बों में दिहाड़ी मजदूरी अथवा नौकरी के लिए जाते हैं।
M M कालेज, मोदीनगर में इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डा. K. K. शर्मा के अनुसार सिनौली की संस्कृति का संबंध उत्तर वैदिक काल और हड़प्पा सभ्यता के बीच की संस्कृति का प्रतीत होता है। यहाँ एक शाही कब्रगाह में मिली है। आठ कब्र में से तीन खाटनुमा ताबूतों में हैं। इनके साथ हथियार, विलासिता की सामग्री, पशु-पक्षियों के कंकाल और तीन दफनाए गए रथ मिले हैं। ये ताबूत पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के लिए नई खोज है, जो चार हजार साल पुरानी उन्नत संस्कृति को दर्शाते हैं। 2000 ईसा पूर्व के आसपास मेसोपोटामिया और अन्य संस्कृतियों में जिस तरह के रथ, तलवार-ढाल और हेलमेट (टोपा) युद्ध में इस्तेमाल किए जाते थे, उसी काल के आसपास यहाँ भी वो चीजें थीं। ये तकनीकी रूप से काफी उन्नत थीं, और अन्य सभ्यताओं के समकालीन या उससे थोड़ा पहले ही यहाँ आ चुकी थीं।
शाही कब्रगाह
इतिहासकारों ने पिछले पंद्रह वर्षों में यमुना-हिंडन दोआब में सैकड़ों पुरातात्विक टीलों की खोज कर बागपत- बड़ौत- बरनावा- हस्तिनापुर सर्किट को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर एक नई पहचान दी है। ऐतिहासिक विवरण के अनुसार सिनौली साइट के दूसरे चरण (2018) तथा तीसरे चरण (2019) की खुदाई में तांबे की परत चढ़े 3 युद्ध रथ, अति दुर्लभ लकड़ी के ताबूत में संरक्षित किए गए 8 मानव कंकाल (स्वर्ण आभूषण पहने हुए) तथा इसके अलावा युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाले कवच, हेलमेट, तांबे की तलवारें, खंजर, स्वर्ण आभूषण, तांबे के कटोरे, मृदभांड और ईंटों के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। शाही ताबूतों में मिले नर-कंकालों को पुरातत्वविदों ने तीन से चार हजार साल पुराना माना है। डरहम यूनिवर्सिटी, लंदन के इतिहासकारों ने भी सिनौली साइट के GPS सर्वेक्षण में यही बात कही है।
महाभारत से सम्बंध
ASI ने मई 2018 में सिनौली साइट का GPR (ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार) सर्वे कराया। सर्वे में पुरातत्वविदों ने खुदाई के इलाके की जमीन के भीतर डेढ़ से साढ़े तीन मीटर की गहराई तक मिले साक्ष्यों के बारे में जानकारी जुटाई। सर्वे की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ इस पुरास्थल पर एक बेशकीमती ऐतिहासिक धरोहर के मौजूद होने का पता चलता है। इसके अलावा यहाँ बस्ती होने के पुरावशेष भी मिल रहे हैं। पिछले साल यहाँ मिली कब्रगाह से मात्र दो सौ मीटर दूर एक नई साइट पर खुदाई कराई गई, तो वहाँ पर तांबे को गलाने की चार भट्टियाँ और आवासीय क्षेत्र के भी पुख्ता सबूत मिले हैं। इस परिक्षेत्र से जिस सभ्यता के पुरावशेष मिल रहे हैं, कुछ इतिहासकार उसे महाभारत काल से भी जोड़कर देख रहे हैं। महाभारत में इस क्षेत्र को कुरु वंश की राजधानी हस्तिनापुर बताया गया है।