एक परिचय:
- भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं, से प्रारंभ होता है।
- यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी। यह क्षेत्र वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है।
- सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया और चीन की सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी कहीं अधिक उन्नत थी।
- 1920 में, भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा किए गए सिंधु घाटी के उत्खनन से प्राप्त अवशेषों से हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो जैसे दो प्राचीन नगरों की खोज हुई।
- भारतीय पुरातत्त्व विभाग के तत्कालीन निदेशक जनरल जॉन मार्शल ने सन 1924 में सिंधु नदी की घाटी में एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की।
हड़प्पा सभ्यता के महत्त्वपूर्ण स्थल:
स्थल | खोजकर्त्ता | अवस्थिति | महत्त्वपूर्ण खोजें |
हड़प्पा | दयाराम साहनी (1921) | यह स्थल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। | >मनुष्य के शरीर की बलुआ पत्थर की बनी मूर्तियाँ >अन्नागार >बैलगाड़ी |
मोहनजोदड़ो (मृतकों का टीला) | रखालदास बनर्जी (1922) | यह स्थल पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। | >विशाल स्नानागर >अन्नागार >कांस्य की नर्तकी की मूर्ति >पशुपति महादेव की मुहर >दाड़ी वाले मनुष्य की पत्थर की मूर्ति >बुने हुए कपड़े |
सुत्कान्गेडोर | स्टीन (1929) | यह स्थल पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी राज्य बलूचिस्तान में दाश्त नदी के किनारे पर स्थित है। | > हड़प्पा और बेबीलोन के बीच व्यापार का केंद्र बिंदु था। |
चन्हुदड़ो | एन .जी. मजूमदार (1931) | यह स्थल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। | >मनके बनाने की दुकानें >बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पदचिन्ह |
आमरी | एन .जी . मजूमदार (1935) | यह स्थल सिंधु नदी के तट पर स्थित है। | >हिरण के साक्ष्य |
कालीबंगन | अमलानन्द घोष (1953) | यह राजस्थान में घग्गर नदी के तट पर स्थित है। | >अग्नि वेदिकाएँ >ऊंट की हड्डियाँ >लकड़ी का हल |
लोथल | आर. राव (1953) | लोथल गुजरात में खंभात की खाड़ी के नजदीक भोगवा नदी के किनारे पर स्थित है। | >मानव निर्मित बंदरगाह >गोदीवाडा >चावल की भूसी >अग्नि वेदिकाएं >शतरंज का खेल |
सुरकोतदा | जे.पी. जोशी (1964) | गुजरात में स्थित है। | >घोड़े की हड्डियाँ >मनके |
बनावली | आर.एस. विष्ट (1974) | बनावली हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है। | >मनके >जौ >हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा संस्कृतियों के साक्ष्य |
धौलावीरा | आर.एस.विष्ट (1985) | धौलावीरा गुजरात में कच्छ के रण में स्थित है। | >जल निकासी प्रबंधन जल कुंड |
सिंधु घाटी सभ्यता के चरण
सिंधु घाटी सभ्यता के तीन चरण हैं:
- प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता (3300ई.पू.-2600ई.पू. तक)
- परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता (2600ई.पू-1900ई.पू. तक)
- उत्तर हड़प्पाई सभ्यता (1900ई.पु.-1300ई.पू. तक)
- प्रारंभिक हड़प्पाई चरण का संबंध ‘हाकरा चरण’ से है, जिसे घग्गर- हाकरा नदी घाटियों फली फूली सभ्यताओं से चिह्नित किया जाता है।
- हमें हड़प्पाई लिपि का प्रथम उदाहरण लगभग 3000 ई.पू के समय में मिलता है।
- इस चरण की विशेषताएँ हैं- एक केंद्रीय इकाई का होना तथा नगरीकरण की ओर अग्रसर होना।
- इस समय व्यापार विकसित हो चुका था। इस चरण के खेती के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं। उस समय मटर, तिल, खजूर, रुई आदि की कृषि की जाती थी।
- इस सभ्यता का कोटदीजी नामक स्थल परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के चरण को प्रदर्शित करता है।
- लगभग 2600 ई.पू. तक सिंधु घाटी सभ्यता परिपक्व अवस्था में पहुँच चुकी थी।
- परिपक्व हड़प्पाई सभ्यता के आने तक प्रारंभिक हड़प्पाई सभ्यता बड़े- बड़े नगरीय केंद्रों में परिवर्तित हो चुकी थी। उदाहरण के लिए- वर्तमान पाकिस्तान में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो तथा वर्तमान भारत के गुजरात राज्य में स्थित लोथल है।
- सिंधु घाटी सभ्यता के क्रमिक पतन का आरंभ 1800 ई.पू. से माना जाता है, 1700 ई.पू. तक आते-आते हड़प्पा सभ्यता के कई शहर नष्ट हो चुके थे ।
- किन्तु प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के बाद पनपीं संस्कृतियों में भी इसके तत्व देखे जा सकते हैं।
- कुछ पुरातात्त्विक आँकड़ों के अनुसार उत्तर हड़प्पा सभ्यता का अंतिम समय 1000 ई.पू. – 900 ई. पू. तक माना गया है।
नगर नियोजन और विन्यास:
- हड़प्पाई सभ्यता अपने उन्नत नगर नियोजन के लिए जानी जाती है।
- बस्ती दो भागों में विभाजित है, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है।
- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के नगरों में अपने- अपने दुर्ग होते थे जो नगर से कुछ ऊँचाई पर स्थित थे अनुमानतः इसमें उच्च वर्ग के लोग निवास होंगे।
- दूसरी ओर ईंटों से निर्मित निचले नगर या शहर होते थे, जिनमें सामान्य लोग निवास करते थे।
- हड़प्पा सभ्यता की एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि इस सभ्यता में ग्रिड प्रणाली मौजूद थी, जिसके अंतर्गत सडकें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
- अन्न भंडारों (अन्नागारों) का निर्माण हड़प्पा सभ्यता के नगरों की प्रमुख विशेषता थी।
- पकी हुई ईंटों का प्रयोग हड़प्पा सभ्यता की एक प्रमुख विशेषता थी क्योंकि समकालीन मिस्र में मकानों के निर्माण के लिए धूप में सुखाई गई ईंटों का प्रयोग होता था।
- हड़प्पा सभ्यता में जल निकासी प्रणाली बहुत उत्कृष्ट थी।
- हर छोटे या बड़े घर के अंदर स्वंय का स्नानघर और आँगन होता था।
- कालीबंगा के बहुत से घरों में कुएँ नही पाए गए हैं।
- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और बाकी के अधिकांश स्थलों में नगर इसी दो भागों के हिसाब से बंटे हुए प्राप्त हुए हैं, लेकिन गुजरात में खोजे गए धोलावीरा में नगर के तीन भागों में विभाजित होने के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- इस सभ्यता में घरों के दरवाजों को मुख्य सड़कों की तरफ न करके छोटी गलियों की तरफ रखा जाता था। भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं होती थीं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन का सीधा अवलोकन नहीं होता था।
कृषि:
- हड़प्पा के बहुत से स्थलों से कृषि से संबंधित बहुत सारे साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जैसे बनवाली से मिट्टी का हल प्राप्त हुआ है, और कालीबंगा से जुते हुए खेत के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- इस प्रकार इस सभ्यता के लोग कृषि से संबंधित विधियों जैसे जुताई, बुआई, सिंचाई आदि से परिचित थे।
- हड़प्पा के गाँव मुख्य रूप से बाढ़ के मैदानों के पास स्थित थे, जो पर्याप्त मात्रा में अनाज का उत्पादन करते थे।
- गेहूँ, जौ, तिल, मसूर, सरसों आदि का उत्पादन होता था। गुजरात के कुछ स्थानों से बाजरा उत्पादन के संकेत भी मिले हैं, जबकि यहाँ चावल के प्रयोग के साक्ष्य तुलनात्मक रूप से बहुत ही दुर्लभ मिलते हैं।
- ऐसा माना जा सकता कि सिंधु सभ्यता के मनुष्यों ने सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारंभ की थी।
- मुहरों और मृण्मूर्तियों पर सांड के चित्र मिले हैं तथा पुरातात्त्विक खुदाई से बैलों से जुते हुए खेत के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं।
- हड़प्पा सभ्यता के ज्यादातर स्थल अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में मिले हैं, जहाँ खेती के लिये सिंचाई की आवश्यकता होती थी।
- नहरों के अवशेष हड़प्पाई स्थल शोर्तुगई अफगानिस्तान में पाए गए हैं ,लेकिन पंजाब और सिंध में नहीं पाए गए हैं।
- हड़प्पाई लोग कृषि के साथ-साथ बड़े पैमाने पर पशुपालन से भी भली भांति परिचित थे ।
- घोड़े के साक्ष्य सूक्ष्म रूप में मोहनजोदड़ो और लोथल की एक टेराकोटा की मूर्ति से मिले हैं। हड़प्पाई संस्कृति किसी भी स्थिति में अश्व केंद्रित नहीं थी।
अर्थव्यवस्था:
- असंख्य संख्या में मिली मुहरें, एकसमान लिपि, बाट और मापन की विधियों से सिंधु घाटी सभ्यता में व्यापार के महत्त्व के बारे में पता चलता है।
- इस सभ्यता के लोग अपने क्षेत्रों के साथ-साथ बाहर के देशों जैसे की मध्य एशिया, पश्चिम एशिया, अफगानिस्तान, ईरान, मेसोपोटामिया और मिस्र आदि जैसे देशों के साथ व्यापार किया करते थे।
- हड़प्पावासी पत्थर, धातुओं, सीप या शंख का व्यापर करते थे।
- धातु मुद्रा का प्रयोग अस्तित्व में नहीं था। व्यापार के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली मौजूद थी।
- हड़प्पावासियों के पास अरब सागर के तट पर कुशल नौवहन प्रणाली भी मौजूद थी।
- हड़प्पावासियों ने उत्तरी अफगानिस्तान में अपनी व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित की थीं, जहाँ से प्रमाणिक रूप से मध्य एशिया से सुगम व्यापार होता था।
- दजला-फरात नदियों की भूमि वाले क्षेत्र से भी हड़प्पा वासियों के वाणिज्यिक संबंध थे।
- जैसा कि कपास की खोज के सबसे पहले प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता में देखने को मिलते हैं, इसलिए यहाँ के लोग सूती वस्त्रों का व्यापार करते थे।
शिल्पकला:
- हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएँ निर्मित करने की विधि, उसके उपयोग से भली भाँति परिचित थे। बर्तनों का निर्माण और शिल्प संबंधित कार्य जैसे मूर्तियां बनाना, खिलौने बनाना आदि भी यहाँ के लोग करते थे।
- हड़प्पाई कांस्य की वस्तुएँ निर्मित करने के लिए सिरे पेर्डु यानी लुप्त मोम तकनीक का प्रयोग करते थे।
- तांबा राजस्थान की खेतड़ी की खानों से प्राप्त किया जाता था और टिन का आयात अफगानिस्तान से किया जाता था।
- बड़ी-बड़ी ईंट निर्मित संरचनाओं से राजगीरी जैसी महत्त्वपूर्ण शिल्पकला के साथ साथ राजमिस्त्री वर्ग के अस्तित्व का पता चलता है।
- इन स्थलों से पाई गई ईंटे 4 : 2 : 1 के अनुपात थीं।
- हड़प्पावासी नाव बनाने की विधि, मनका बनाने की विधि, मुहरें बनाने की विधि से भली-भाँति परिचित थे। मृण्मूर्तियों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की महत्त्वपूर्ण शिल्प विशेषता थी।
- जौहरी वर्ग सोने, चांदी और कीमती पत्थरों से आभूषणों का निर्माण करते थे।
- मिट्टी के बर्तन बनाने की विधि पूर्णतः प्रचलन में थी, हड़प्पा वासियों की स्वयं की विशेष बर्तन बनाने की विधियाँ थीं, हड़प्पाई लोग चमकदार बर्तनों का निर्माण करते थे।
प्रशासन:
- सिंधु घाटी सभ्यता से बहुत कम मात्रा में लिखित साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जिन्हें अभी तक पुरातत्त्वविदों द्वारा पढ़ा नहीं जा सका है।
- कुछ पुरातत्वविद इस मत के हैं कि हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी। दूसरे पुरातत्वविद यह मानते हैं कि यहाँ कोई एक नहीं बल्कि कई शासक हुआ करते थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने-अपने राजा होते थे।
- कुछ और यह तर्क देते हैं कि यह एक ही राज्य था जैसा कि पुरावस्तुओं में समानताओं नियोजित बस्तियों के साक्ष्यों, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात, तथा बस्तियों के कच्चे-माल के स्रोतों के समीप स्थित होने से स्पष्ट होता है।
- हड़प्पाई स्थलों पर किसी भी प्रकार के मंदिर के प्रमाण नहीं मिले हैं। अतः हड़प्पा सभ्यता में पुजारियों के प्रुभुत्व या मौजूदगी को नकारा जा सकता है।
- ऐसा माना जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता व्यापारी वर्ग द्वारा शासित थी।
- यदि हम हड़प्पा सभ्यता में शक्तियों के संकेन्द्रण की बात करें तो पुरातत्त्वीय अभिलेखों द्वारा कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है।
- कुछ पुरातत्त्वविदों का मानना है कि हड़प्पा सभ्यता में कोई शासक वर्ग नहीं था तथा समाज के हर व्यक्ति को समान दर्जा प्राप्त था।
- कुछ पुरातत्त्वविदों का मत है कि हड़प्पा सभ्यता में कई शासक वर्ग मौजूद थे, जो विभिन्न हड़प्पाई शहरों में शासन करते थे।
धर्म:
- एक लघु मृण्मूर्ति पर एक महिला का चित्र पाया गया है, इनमें महिला के गर्भ से उगते हुए पौधे को दिखाया गया है।
- हड़प्पा के लोग पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानते थे और पृथ्वी की पूजा उसी तरह करते थे, जिस प्रकार मिस्र के लोग नील नदी की पूजा देवी के रूप में करते थे।
- पुरुष देवता के रूप में मुहरों पर तीन शृंगी वाले चित्र पाए गए हैं, जो कि योगी की मुद्रा में बैठे हुए हैं।
- देवता के एक ओर हाथी, एक ओर बाघ, एक ओर गैंडा तथा उनके सिंहासन के पीछे भैंसे का चित्र देखा जा सकता है। उनके पैरों के पास दो हिरनों के चित्र देखे जा सकते हैं। इस चित्रित मूर्ति को पशुपतिनाथ महादेव की संज्ञा दी गई है।
- अनेक पत्थरों पर लिंग तथा स्त्री जनन अंगों के चित्र भी पाए गए हैं।
- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मुख्यतः वृक्षों तथा पशुओं की पूजा किया करते थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे महत्त्वपूर्ण पशु एक सींग वाला गैंडा था तथा दूसरा महत्त्वपूर्ण पशु कूबड़ वाला सांड था।
- अत्यधिक मात्रा में ताबीज भी प्राप्त हुए हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन:
- ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिनके अनुसार लगभग 1800 ईसा पूर्व तक चोलिस्तान जैसे क्षेत्रों में अधिकांश विकसित हड़प्पा स्थलों को त्याग दिया गया था। इसके साथ ही गुजरात, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसी नयी बस्तियों में आबादी बढ़ने लगी थी।
- सिंधु घाटी सभ्यता का लगभग 1800 ई.पू. में पतन हो गया था, परंतु उसके पतन के कारण अभी भी वाद-विवाद का विषय हैं।
- एक तर्क यह कहता है कि इंडो-यूरोपीय जनजातियों अर्थात आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता पर आक्रमण कर दिया तथा उसे नष्ट कर दिया।
- सिंधु घटी सभ्यता के बाद की संस्कृतियों में ऐसे कई बातों का प्रमाण मिलता है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यह सभ्यता आक्रमण के कारण एकदम विलुप्त नहीं हुई थी।
- दूसरी तरफ से बहुत से पुरातत्त्वविद सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण प्राकृतिक कारणों मानते हैं।
- प्राकृतिक कारण भूगर्भीय और जलवायु संबंधी हो सकते हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, अत्यधिक बाढ़, नदियों का सूख जाना और/या मार्ग बदल लेना तथा भूमि का अत्यधिक उपयोग सम्मिलित हैं।
- एक सिद्धांत यह भी है कि सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र में अत्यधिक विवर्तिनिकी विक्षोभों की उत्पत्ति हुई, जिसके कारण अत्यधिक संख्या में भूकंपों की उत्पत्ति हुई।
- एक प्राकृतिक कारण वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन भी हो सकता है।
- एक मान्यता यह भी है कि नदियों द्वारा अपना मार्ग बदलने के कारण खाद्य उत्पादन क्षेत्रों में बाढ़ आ गई हो।
- इन प्राकृतिक आपदाओं को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का मंद गति से हुआ, परंतु निश्चित कारण माना गया है।
- ऐसा लगता है कि एक सुदृढ़ एकीकरण के तत्व, संभवतः हड़प्पाई राज्य, का अंत हो गया था। मुहरों, लिपि, विशिष्ट मनकों तथा मृदभाण्डों के लोप, मानकीकृत बाट प्रणाली के स्थान पर स्थानीय बाटों के प्रयोग से शहरों के पतन तथा परित्याग जैसे परिवर्तनों से इस तर्क को बल मिलता है।