अटलान्टिक महासागर की धारायें (Currents of the Atlantic Ocean)

उत्तरी भूमघ्यरेखीय धारा (North Equatorial Current)

उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा एक चौड़ी पेटी में प्रवाहित होती है। इसका अक्षांश रेखीय विस्तार  उ. से लगभग  उ. अक्षांश तक है। इस धारा की उत्पत्ति व्यापारिक पवनों से होती है। यह एक छिछली धारा है जो सतह से 200 मीटर गहराई तक के जल को प्रभावित करती है। इसका प्रवाह पश्चिम दिशा की ओर मन्द गति से होता है।  उ. अक्षांश के दक्षिण इस धारा का औसत वेग 15 से 17 समुद्री मील प्रतिदिन होता है, किन्तु इस अक्षांश के उत्तर इसका वेग परिवर्तनशील होता है। उत्तरी पश्चिमी अफ्रीका के तटसे चलने वाली धाराओं से इसे जल प्राप्त होता है। इन तटवर्ती क्षेत्रों में स्थल की ओर चलने वाली व्यापारिक हवाओं के कारण मध्यम गहराई से शीतल जल सतह पर ऊपर उठ जाता है जिसे ये हवायें बहाकर अपने साथ पश्चिम की ओर ले जाती हैं। वास्तव में अफ्रीका के तट से दूर जाने पर ही इस धारा की सारी विशेषताओं का विकास होता है।

उत्तरी भूमध्य रेखीय विस्तृत जलधारा पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती हुई सीधे मार्ग का अनुसरण नहीं करती। शूमेकर (Schumacher) के अनुसार  उ. अक्षांश के उत्तर यह धारा मध्य-अटलान्टिक कटक तक पहुँच ने से पहले दार्यी ओर मुड़कर उत्तर की ओर चल पड़ती है। किन्तु उपर्युक्त कटक के ऊपर से गुजरने के पश्चात् यह बायीं ओर मुड़कर दक्षिण की ओर प्रवाहित होती है। यद्यपि मध्य-अटलान्टिक कटक समुद्र की सतह से 3000 मीटर नीचे स्थित है, तथापि उसके ऊपर से चलते समय इसमें उत्तर की ओर झुकाव सर्वाधिक होता है। अटलान्टिक महासागर के पश्चिम भाग में यह धारा दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा की उस शाखा से मिल जाती है जो भूमध्य रेखा को पार करके उत्तर की ओर पहुँचती है। इस शाखा की जल राशि भिन्न होती है। इस प्रकार इस भाग में विभिन्न जलराशियों का मिश्रण होता है।

जब उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा  पश्चिमी देशान्तर पर पहुँचती है, तब यह दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। पहली शाखा कैरेबियन सागर में पहुँचती है, तथा दूसरी शाखा वेस्टइन्डीज के उत्तर प्रवाहित होती हुई  उत्तरी अक्षांश के निकट पहली शाखा से मिल जाती है। ज्ञातव्य है कि पहली शाखा कैरेबियन सागर को पार करती हुई मैक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करती है तथा उसमें मिश्रित जलराशि भर देती है। पुनः फ्लोरिडा जल डमरूमध्य के तंग मार्ग से निकल कर उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा अटलांटिक महासागर मे प्रवेश कर जाती है। उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा की उत्तरी अर्थात् पहली शाखा जब एन्टिलीज के उत्तरी तट के समानान्तर प्रवाहित होती है, तब वहाँ इसे एन्टिलीज धारा के नाम से पुकारा जाता है। इसके द्वारा प्रवाहित जल सारगेसो सागर के जल के समान होता है। इन धाराओं के द्वारा मैक्सिको की खाड़ी में छोड़े गए जल से खाड़ी के जल-स्तर में वृद्धि हो जाती है, जिसके फलस्वरूप ‘गल्फ स्ट्रीम’ नामक धारा प्रणाली (Gulf Stream System) की उत्पत्ति होती है जिसमें तीन धारायें सम्मिलित की जाती हैं –
(i) फ्लोरिडा धारा, (ii) गल्फ स्ट्रीम, तथा (iii) उत्तरी अटलान्टिक प्रवाह।
(i) फ्लोरिडा धारा (Florida Current) – फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से हेटरास अन्तरीप (Cape Hatteras) के मध्य उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली धारा को फ्लोरिडा धारा कहा जाता है। इस धाग

का प्रारम्भ वास्तव में यूकाटन चैनल से माना जाता है , क्योंकि इस जल सन्धि से होकर प्रवाहित होने वाली जल-राशि का एक बड़ा भाग मैक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करता है। आगे चलकर यही जलराशि फ्लोरिडा धारा में मिल जाती है। फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से निकलने के उपरान्त फ्लोरिडा धारा और एन्टिलीज धारा परस्पर मिल जाती है, फिर भी इस सम्मिलित धारा को हेटरास अन्तरीप तक फ्लोरिडा धारा ही कहा जाता है।

फ्लोरिडा धारा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यद्यपि अनेक मत प्रचलित हैं, किन्तु मैक्सिको की खाड़ी तथा इसके अटलान्टिक महासागर तट के जल-स्तर का अन्तर ही इस धारा की उत्पत्ति का मूल कारण माना जाता है। स्वर्ड्डुप तथा मान्टगोमरी के अनुसार सीडर कीज तथा समीपवर्ती महासागरों के पश्चिमी तट पर स्थित सेन्ट आगस्टीन के समुद्र-तल में लगभग 19 से.मी. का अन्तर पाया जाता है। मान्टगोमरी की गणनानुसार इस धारा का वेग फ्लोरिडा के संकरे जल अुमरूमध्य से निकलते समय 193 से.मी./सेकन्ड होता है, जो इस धारा के मध्यवर्ती भाग के वेग से निश्चित रूप से अधिक है। खाड़ी के जल-स्तर को ऊँचा बनाये रखने में व्यापारिक पवनों का योगदान होता है। इसके अतिरिक्त मिसौरी-मिसीसिपी नदियों के द्वारा खाड़ी में भारी मात्रा में जल छोड़ा जाता है, जिससे जल-स्तर ऊँचा होने में अतिरिक्त सहायता मिलती है।

वुस्ट की गणनानुसार फ्लोरिडा जलडमरूमध्य से इस धारा के द्वारा प्रति सेकन्ड 26 मिलियन घनमीटर जल बाहर निकलता है। किन्तु जल की उपर्युक्त मात्रा में वार्षिक परिवर्तन होना एक अन्य विशेषता है। स्मरण रहे कि इस धारा की दायीं ओर अपेक्षाकृत कम घनत्व वाला जल तथा बायीं ओर अधिक घनत्व वाला जल पाया जाता है। इसी कारण से धारा की दायीं ओर का जल तथा बायीं ओर के जल-स्तर की तुलना में 45 सेमी अधिक ऊँचा होता है। जलडमरूमध्य से निकल कर यह धारा महाद्वीपीय मग्न ढाल के सहारे तीव्र गति से आगे बढ़ती है। इस धारा की बार्यीं ओर तटवर्ती महासागरीय जल उथला एवं शांन्त रहता है, तथा फ्लोरिडा धारा और इस शान्त जल के मध्य एक स्पष्ट सीमा रेखा दिखाई पड़ती है। इस धारा के तापमान, लवणता तथा अन्य विशेषताओं का विस्तृत अध्ययन पिल्सबरी ने ‘ब्लेक अभियान’ के दौरान 1885 से 1889 तक की अवधि में किया। इनके निरीक्षणों के आधार पर इस धारा की सतह का तापमान  सेल्सियस तथा लवणता  पायी गई।  उ. अक्षांशां में स्थित ब्लेक पठार तक इस धारा के जल का तापमान कहीं भी  से. से कम नहीं पाया गया। इस धारा की गहराई 800 मीटर से अधिक नहीं होती है। ब्लेक पठार से आगे बढ़ने पर इस धारा की गहराई तथा इसके आयतन में आकस्मिक वृद्धि हो जाती है। इस वृद्धि का मुख्य कारण सारगेसो सागर के दक्षिण-पश्चिमी भाग के जल का इस धारा में मिल जाना है। इस जलराशि का तापमान  से. से काफी कम होता है।

फ्लोरिडा जल डमरूमध्य से निकलने वाली इस संकरी धारा की चौडाई में आगे बढऩे पर उत्तरोत्तर वृद्धि होती जाती है। फ्लोरिडा जलडमरूमध्य में जहाँ इस धारा की चौड़ाई 48 किलोमीटर है, चार्ल्स्टन तक पहुँचकर इसकी चौड़ाई लगभग 240 किलोमीटर हो जाती है। इसी प्रकार तट से इस धारा की दूरी भी सर्वत्र एक समान नहीं पायी जाती।
(ii) गल्फ स्ट्रीम (The Gulf Stream) – मैक्सिको की खाड़ी में उत्पन्न धारा प्रणली का मध्यवर्ती भाग, जो हेटरास अन्तरीप से ग्रान्डबैंक के पूरबी भाग के बीच में प्रवाहित होता है ‘गल्फ स्ट्रीम’ नाम से अभिहित किया जाता है। इस उष्ण धारा की चौड़ाई अपेक्षाकृत कम है तथा इसकी सीमायें सुस्पष्ट हैं। स्टॉमेल (Stommel) ने गल्फ स्ट्रीम को इस प्रकार परिभाषित किया है: “यह धारा तीव्रगामी जल की एक ऐसी सँकरी पट्टी है जो बिलकुल भिन्न प्रकार की दो जलराशियों के मध्य सीमा बनाती है”। इस धारा के कारण सारगेसो सागर का उष्ण जल तट के निकटवर्ती शीतल और अधिक घनत्व वाले जल के ऊपर प्रवाहित नहीं होने पाता। गल्फ स्ट्रीम के पृष्ठ भाग के तापमान एवं महाद्वीप के तटवर्ती सागर के तापमान में भारी अन्तर अंकित किया जाता है। उदाहरणार्थ, धारा के दक्षिणी भाग का तापमान शीत ऋतु में लगभग  से. रहता है, जब कि तटवर्ती जल का तापमान मात्र  होता है। गल्फ स्ट्रीम को तीन

स्पष्ट परतो में विभाजित किया जा सकता है जो निम्नांकित है :-
(i) ऊपरी परत जो कुछ मीटर मोटी होती है तथा जिसमें ऋतुओं के साथ-साथ तापमान में भारी परिवर्तन होता है; (ii) ऊपरी परत के ठीक नीचे वाली परत जिसमें गहराई के साथ तापमान में भारी गिरावट अंकित की जाती है, तथा (iii) सबसे नीचे की तीसरी मोटी परत जो 1500 मीटर से अधिक नीचे तक फैली होती है तथा जिसमें ठण्डी जलराशि पाई जाती है। ज्ञात्व है कि गल्फ धारा में अधिक वेग से होने वाला प्रवाह ऊपरी परत तक ही सीमित है।

साधारणतौर पर गल्फ स्ट्रीम की सतह पर जल प्रवाह बड़े वेग से होता है। इसलिन (Iselin) की गणनानुसार इस धारा का वेग 120 से 140 सेन्टीमीटर प्रति सेकन्ड तक होता है। डाइटरिख तथा इसलिन (Dietrich and Iselin) के अनुसार चेसापीक खाड़ी के निकट इस धारा द्वारा प्रति सेकंड 75 से 93 मिलियन घन मीटर जल प्रवाहित होता है। इस धारा के पूरब तथा पश्चिम असमान जल दिशियाँ पाई जाती हैं।

इस धारा के प्रवाह मार्ग पर अन्तः समुद्री उच्चावच का विशेष प्रभाव देखा जाता है। लगभग  उ. अक्षांश तक ब्लेक पठार के साथ-साथ यह धारा 800 मीटर गहाराई तक प्रवाहित होती है, किन्तु आगे बढ़नें के साथ ही महासागर की गहराई  से  मीटर तक हो जाती है, अतः इस भाग में उच्चावच का प्रभाव नगण्य हो जाता है।

इस धारा की सीमाओं को इसके पृष्ठीय जल की विशेषताओं द्वारा निर्धारित किया जाता है, जिनमें जल के रंग में परिवर्तन तथा सारगेसम (Sargassum) नामक समुद्री वनस्पति की पंक्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त जल का तापमान एवं उसकी लवणता के आधार पर भी इस धारा का सीमांकन किया जाता है। गल्फ स्ट्रीम का ‘उष्ण क्रोड’ (warm core) वह भाग है जिसमें जल का तापमान पूरब की ओर समान गहराई पर स्थित जल के तापमान से अधिक होता है। साधारण तौर पर यह गहराई 300 से 400 मीटर तक मानी जाती है। ‘उष्ण क्रोड’ की बार्यी ओर इस धारा के पृष्ठ तल के तापमान तथा रंग आदि में आकस्मिक परिवर्तन पाया जाता है।

गल्फ स्ट्रीम में विशाल जलावर्तों (eddies) तथा विसर्पों (meanders) का विकास होता है। इन आवतों के तरंगो के आयाम 200 किमी. तक हो सकते हैं। गल्फ स्ट्रीम जब  उ. अक्षांश के निकट उत्तरी अटलान्टिक प्रवाह में विलीन हो जाती है, तब वहाँ अनेंक भँवरें उत्पन्न हो जाती हैं।

गल्फ स्ट्रीम की एक अन्य विशेषता यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर समुद्र तल में उत्तर की ओर क्रमशः वृद्धि होती जाती है। फ्लोरिडा की अपेक्षा हेलीफैक्स का समुद्र तल लगभग 35 सेमी अधिक ऊँचा रहता है। समुद्र तल में उत्पन्न इस असमानता के कारण तट तथा महाद्वीपीय मग्र तट के जल में उत्तर से दक्षिण की ओर प्रवाहित होने वाली समुद्री धारा उत्पन्न हो जाती है जो शीतल होती है। इस प्रकार गल्फ स्ट्रीम की बायीं ओर वाली सीमा अधिक तापान्तर के कारण बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। तटवर्ती जल के अधिक ठण्डा होने के कारण उपर्युक्त सीमा रेखा को ‘ठण्डी दीवार’ (cold wall) की संज्ञा प्रदान की जाती है।

गल्फ स्ट्रीम तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट के बीच अपेक्षाकृत ठण्डे जल की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि नदियों द्वारा बहाकर लाया गया जल जिसका तापमान कम होता है, तट के सहारे दक्षिण की ओर चला आता है। इसी प्रकार सेन्ट लारेन्स की खाड़ी का जल भी इस ठण्डे जल की राशि में वृद्धि करने में सहायक होता है। अन्य लोगों की मान्यता है कि शीतकाल में महाद्वीप का भीतरी भाग अत्यधिक सर्द हो जाने से तटवर्ती जल पर उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। किन्तु वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि पछुवा हवाओं के द्वारा तट के निकट से उष्ण जल बहाकर महासागर में पूर्व की ओर स्थानान्तरित कर दिया जाता है और उसके स्थान पर नितल का ठण्डा जल ऊपर उठकर आ जाता है। इसके अतिरिक्त, लैब्रेडोर की ठण्डी धारा उच्च अक्षांशों की ठण्डी जल राशि को अपने साथ हेटरास अन्तरीप तक बहा कर ले आती है। वास्तव मे गल्फ स्ट्रीम का प्रवाह क्षेत्र हेटरास अन्तरीप से ग्रान्डबैंक तक सीमित है। इस भाग में गल्फ धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट

का अनुसरण करती हुई चलती है।  उ. अक्षांश को पार करने पर इस धारा की दिशा में परिवर्तन हो जाता है, और अब यह पछुवा पवनों के प्रभाव से पूरब की ओर प्रवाहित होती है। धारा की दिशा में परिवर्तन में पवनों के अतिरिक्त पृथ्वी के आवर्तन से उत्पन्न विक्षेपक बल का महत्वपूर्ण योगदान होता है। आगे बढ़ने पर गल्फ स्ट्रीम की पहचान समाप्त हो जाती है और यह अनेक शाखाओं में विभाजित हो जाती है। इन उफ्थाराओं के मध्य अनेक जलावर्त (eddies) तथा प्रतिधाराओं (counter-currents) की उत्पत्ति हो जाती है।
(iii) उत्तरी अटलान्टिक धारा (North Atlantic Current) – पछुवा पवनों के प्रभाव से हैलीफैक्स के दक्षिण में गल्फ स्ट्रीम बिल्कुल पूरब की ओर मुड़ जाती है। गल्फ स्ट्रीम प्रणाली के इस विस्तार को उत्तरी अटलान्टिक पछुवा पवन प्रवाह (North Atlantic West Wind Drift) भी कहते हैं। इस प्रवाह की मुख्य विशेषता यह है कि यह वेग से प्रवाहित होने वाली जलधारा की एक सँकरी पट्टी न होकर अनेक विस्तृत जलधाराओं से मिलकर बना हुआ है। उत्तरी अटलान्टिक धारा स्थूल रूप से दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है – उत्तरी शाखा तथा पूर्वी शाखा। इनमें से प्रत्येक कई उपशाखाओं में विभक्त होकर विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होती है।

उत्तरी शाखा की एक उपशाखा मुख्य रूप से पूर्व-उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है तथा पुनः छोटीछोटी जलधाराओं में विभक्त हो जाती है। एक शाखा वीविल-थामसन कटक (Wyville-Thomson Ridge) को पार करके नार्वे सागर तक पहुँचती है। स्कैंडिनेविया प्रायद्वीप के तट के सहारे चलने वाली इस धारा को नार्वे की धारा (Norwegian Current) कहते हैं। यह धारा बेरेण्ट्स सागर से होती हुई स्पिट्जबर्गेन द्वीप तक चली जाती है। गल्फ स्ट्रीम प्रणाली की एक शाखा आइसलैंड के उत्तरी तट के सहारे आगे बढ़कर नार्वे सागर में प्रवेश करती है। आर्कटिक सागर में प्रवेश करने पर इन धाराओं का जल अत्यधिक ठंडा और कम खारा हो जाता है। यही जल डेनमार्क जलडमरूमध्य से होकर ठण्डी जलधारा के रूप में ग्रीन लैण्ड के पूर्वी किनारे दक्षिण की ओर प्रवाहित होता है। इसे पूर्वी ग्रीनलैण्ड धारा कहते हैं। इस धारा के जल का तापमान तथा लवणता कम होती है। इसी धारा की एक छोटी शाखा दक्षिणपूर्व जाकर पूर्वी आइसलैंड आर्कटिक धारा (East Iceland Arctic Current) नाम से प्रवाहित होती है। उत्तरी अटलान्टिक प्रवाह की एक अन्य शाखा उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम की ओर मुड़ जाती है तथा आइसलैंड के दक्षिणी तट के निकट प्रवाहित होती है। इसे इरमिंगर धारा कहा जाता है। इस धारा का कुछ जल आइसलैण्ड के पश्चिमी तट की ओर प्रवाहित होता है, किन्तु इसका अधिकांश भाग दक्षिण की ओर चला जाता है तथा पूर्वी ग्रीनलैंड धारा से मिल जाता है।

उत्तरी अटलान्टिक प्रवाह की पूर्वी शाखा मध्य अटलान्टिक कटक ( the Mid-Atlantic Ridge ) को लगभग  उ. अक्षांश पर पार करके दायीं ओर मुड़ जाती है तथा फ्रान्स एवं स्पेन के तट के समीप पहुँच जाती है। हेलैन्ड-हैन्सेन तथा नैन्सेन (Helland-Hansen and Nansen) के अनुसार इस क्षेत्र में स्पष्ट रूप से महासागरीय धाराओं का अभाव उल्लेखनीय है, फिर भी महासागर से जल की एक सतही धारा जिब्राल्टर के तंग जल मार्ग से भूमध्य सागर में प्रवेश करती है। इसके विपरीत, भूमध्य सागर के नितल के समीप से अत्यधिक खारा जल जिब्राल्टर जलडमरूमध्य के निचले भाग से प्रवाहित होता हुआ अटलान्टिक महासागर की मध्यम गहराइयों में फैल जाता है। मध्यम गहराई के इस खारे जल का उत्तरी तथा दक्षिणी अटलान्टिक महासागर पर विशेष प्रभाव पड़ता है। उत्तरी अटलान्टिक धारा से कुछ जल बिस्के की खाड़ी में प्रवेश कर जाता है। ज्ञातव्य है कि पूर्वी शाखा का अधिकांश जल दक्षिण की ओर प्रवाहित होता हुआ अन्त में उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा में समाहित हो जाता है।

कनारी ठंडी धारा (Canary Cold Current) – उत्तरी अटलान्टिक धारा के पूर्वी शाखा की दक्षिणी उपशाखा स्पेन के निकट दक्षिण मुड़कर स्पेन, पुर्तगाल तथा उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट के समानान्तर प्रवाहित होती है। कनारी द्वीप के समीप प्रवाहित होने के कारण इसका नाम कनारी धारा रखा गया। उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट की ओर मडीरा से वर्ड अन्तरीप ( Cape Verde ) के मध्य

यह ठण्डी धारा प्रवाहित होती है। इस धारा की उत्पत्ति के मुख्य रूप से दो कारण हैं – पहला, व्यापारिक हवाओं के द्वारा तट के निकट का महासांगरीय जल बहाकर तट से दूर ले जाया जाता है जिससे वहाँ समुद्र की सतह नीची हो जाती है। दूसरा, इसकी क्षतिपूर्ति के लिये समुद्र की गहराइयों से ठण्डा जल ऊपर उठ जाता है जिससे ठण्डे जल की आपूर्ति निरन्तर होती रहती है। उत्तरी अटलान्टिक धारा की एक शाखा जो सेन के तट से दक्षिण की ओर मुड़ जाती है, इस ठण्डी धारा के लिये जल की आपूर्ति में सहायक होती है। कनारी धारा आगे चलकर उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार उत्तरी अटलान्टिक महासागर के दक्षिणी भाग में धाराओं की चक्राकार प्रणाली पूरी हो जाती है। इस ठण्डी धारा की एक शाखा दक्षिण की ओर आगे बढ़ कर अफ्रीका के पश्चिमी तट पर स्थित गिनी की खाड़ी में प्रवेश करती है। इसे गिनी की धारा कहा जाता है।

लैब्रेडोर धारा (Labrador Current) – लैब्रेडोर ठण्डी धारा बेफिन की खाड़ी तथा डेविस जल डमरूमध्य से होकर दक्षिण में संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट पर कॉड अन्तरीप (Cape Cod) तक चलती है। इसके आगे यह धारा समुद्र की गहराइयों में डूब कर अधस्तलीय धारा के रूप में कुछ दूर तक पहुँचती है। यह एक अत्यधिक ठण्डी जलधारा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति आर्काटिक सागर में होने के अतिरिक्त इसमें ग्रीनलैंड के हिमनदों से टूट कर अनेक प्लावी हिमशैल ( icebergs ) प्रवाहित होते हैं। बसन्त ऋतु में इनकी संख्या में विशेष रूप से वृद्धि हो जाती है। प्लावी हिमशैल इस धारा के साथ न्यूफाउण्डलैंड के पूर्वी तट के समीप चले आते हैं। न्यूफाउण्डलैंड एवं ग्रान्डबैंक के निकट इन हिमशैलों की उपस्थिति से जहाजों के आवागमन में खतरा बना रहता है। इस धारा के कारण तापमान नीचे गिर जाता है और इसका प्रभाव मेसाचुसेट्स तक देखा जाता है। महासागर की सतह के नीचे इस ठण्डी धारा का प्रभाव दक्षिण में काफी दूर तक पड़ता है। ग्रान्डबैंक के निकट लैब्रेडोर की ठण्डी धारा गल्फ स्ट्रीम नामक गर्म जल धारा से मिल जाती है। इनके मिलन-स्थल के निकट दो विभित्र वायुराशियों के मिलने से घना कुहरा छाया रहता है जिसके परिणामस्वरूप समुद्री यातायात में व्यवधान पड़ जाता है।

सारगेसो सागर (Sargasso Sea) – उत्तरी अटलान्टिक महासागर के मध्यवर्ती भाग में उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा, गल्फ स्ट्रीम तथा कनारी की ठण्डी धारा के द्वारा एक विशाल अंडाकार क्षेत्र निर्मित हो जाता है। ये सभी धारायें घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप (clockwise) प्रवाहित होती हैं। इस लगभग वृत्ताकार क्षेत्र के भीतर महासागर शान्त एवं स्थिर होता है अथवा जल प्रवाह अत्यधिक मन्द गति से होता है। इस शान्त समुद्र की सतह पर सारगेसम (Sargassum) नामक विशेष प्रजाति की समुद्री घास (sea weed) प्रचुर मात्रा में पायी जाती है जिसके कारण इस वृत्ताकार क्षेत्र का नाम सारगेसो सागर रक्खा गया। किनारों की अपेक्षा इस सागर के मध्य भाग में इस वनस्पति की मोटाई अधिक है। ऐसा अनुमान है कि यह विशेष घास लगभग 11000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। ज्ञातव्य है कि सारगेसो नामक घास जड़विहीन होने के कारण केवल महासागर के पृष्ठ भाग तक ही सीमित है। इन घासों की उत्पत्ति के विषय में यद्यपि अनेक मत प्रचलित हैं, किन्तु सर्वमान्य सिद्धान्त यह है कि इस विशेष प्रजाति की समुद्री वनस्पति केवल खुले समुद्र में ही विकसित होती है। स्मरण रहे कि अन्य किसी भी महासागर में ऐसी घास नहीं पायी जाती।

सारगेसो सागर की सीमायें भी विवादास्पद हैं। मार्मर के अनुसार इस सागर का अक्षांश एवं देशान्तर रेखीय विस्तार क्रमशः  उ. से  उ. अक्षांश तथा  प.  प. देशान्तर तक है। उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायु दाब क्षेत्र में स्थित होने के कारण इस समुद्र में उच्च तापमान तथा वाष्पीकरण की तीव्र दर पायी जाती है। उपर्युक्त कारणों से इस सागर में लवणता की मात्रा अधिक (  ) पायी जाती है। चारों ओर धाराओं से घिरे होने के कारण इस सागर में महासागर के कम लवणता वाले जल का मिश्रण नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त, यहाँ हिम के पिघलने से प्राप्त जल एवं वर्षा अथवा नदियों के द्वारा लाये गये ताजे पानी की आपूर्ति भी नहीं हो पाती। इस प्रकार सारगेसो सागर में लवणता की मात्रा सदैव अधिक बनी

रहती है। कुछ विशेष प्रकार की मछलियों के अण्डे देने के लिये यह समुद्र विशेष उपयोगी पाया गया है। समुद्री पक्षियों का अभाव इसकी एक अन्य विशेषता है।

विषुवत् रेखीय प्रति धारा (Equatorial Counter Current) – विषुवत् रेखीय प्रति धारा की उत्पत्ति उत्तरी तथा दक्षिणी विषुवत् रेखीय धाराओं के मध्य में होती है। यह धारा उपर्युक्त दोनों धाराओं की विपरीत दिशा में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। इसीलिये इसे विपरीत विषुवत् रेखीय धारा अथवा विषुवत् प्रति रेखीय धारा कहा जाता है। उत्तरी-पूर्वी तथा दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के द्वारा अटलान्टिक महासागर के भूमध्य रेखीय क्षेत्र में निरन्तर जल का बहाव पश्चिमी तट की ओर होता रहता है। अतः पश्चिमी तट के निकट जल की भारी मात्रा एकत्रित हो जाने से समुद्र तल ऊँचा हो जाता है। इसके फलस्वरूप समुद्र तल पश्चिम से पूरब की ओर ढालुआं हो जाता है। समुद्र तल का यह ढलान प्रति 1000 किलोमीटर में लगभग 4 सेमी होता है। स्पष्ट है कि पूर्वी तट पर जल-स्तर की कमी को दूर करने हेतु विषुवत् रेखीय प्रति धारा क्षतिपूरक धारा (compensation current) के रूप में प्रवाहित होती है। ज्ञातव्य है कि इस धारा की उत्पत्ति भूमध्य रेखीय प्रशान्त मण्डल (Doldrums) में होती है जहाँ समुद्र की सतह पर पवनों का प्रभाव नगण्य होता है।

यह धारा ग्रीष्म ऋतु में सर्वाधिक शक्तिशाली होती है। किन्तु शीत ऋतु में यह धारा क्षीण हो जाती है और इसका पूर्ण विकास नहीं हो पाता। वर्ष भर इस धारा के दो स्पष्ट भाग दिखायी पड़ते हैं – पश्चिमी भाग तथा पूर्वी भाग। पश्चिमी भाग में यह धारा कम चौड़ी तथा कमजोर होती है। शीतऋतु के प्रारम्भिक दिनों में इस धारा का विकास होता है। विषुवत् रेखीय प्रतिधारा के पूर्वी भाग को वर्ष भर देखा जा सकता है। इस धारा का पूर्वी भाग अफ्रीका के पश्चिमी तर पर गिनी की खाड़ी तक प्रवाहित होता है जहाँ इसे गिनी की धारा (Guinea Current) कहते हैं। ग्रीष्मऋतु में उपर्युक्त दोनों भागों के मिल जाने से एक अत्यधिक शक्तिशाली धारा का विकास होता है। इस धारा की उत्पत्ति दक्षिणी अमेरिका के उत्तरी तट के निकट  पश्चिमी देशान्तर के पश्चिम में होती है। चौड़ाई में इस धारा का विस्तार  उ. से  उ. अक्षांश तक पाया जाता है। पूर्ण विकसित अवस्था में इस धारा के केन्द्रीय भाग में अभिसरण क्षेत्र बन जाता है, जहाँ उत्तर तथा दक्षिण दोनों ओर से महासागरीय जल का प्रवाह होने लगता है।

दक्षिणी अटलान्टिक महासागर की धारायें (Currents of the South Atlantic)

दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा – दक्षिणी अटलांटिक महासागर में प्रचलित दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के द्वारा दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा की उत्पत्ति होती है। यह धारा पूरब से पश्चिम की ओर पश्चिमी अफ्रीका के तट से दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट तक प्रवाहित होती है। इसका अक्षांश रेखीय विस्तार  उ. से  दक्षिणी अक्षांश तक होता है। यह धारा उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली तथा अधिक स्थिर होती है। जून तथा जुलाई में इसं धारा का वेग 20 समुद्री मील प्रति दिन से अधिक होता है। चूँकि तापीय भूमध्यरेखा (Thermal Equator) भौगोलिक भूमध्य रेखा (Geographical Equator) से कुछ दूर उत्तर में स्थित है, अतः दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा का विस्तार वर्ष के अधिकांश महीनों में भूमध्य रेखा के उत्तर तक होता है।

जब यह धारा ब्राजील के पूर्वी तट के निकट पहुँचती है, तब वहाँ साओ रोक अन्तरीप (Cape Sao Roque) के पास इसकी दो शाखायें हो जाती हैं – उत्तरी शाखा उत्तर-पश्चिम की दिशा में कैरेबियन सागर की ओर अग्रसर होती हुई अन्त में उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा से मिल जाती है, जब कि दक्षिणी शाखा दक्षिण की ओर मुड़ कर ब्राजील तट के समानान्तर प्रवाहित होती है। इसे ब्राजील धारा कहा जाता है।

ब्राजील धारा (Brazil Current) – जैसा कि पहले बताया गया है, ब्राजील धारा की उत्पत्ति दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा की एक शाखा के रूप में होती है। यह अत्यधिक गर्म और अधिक लवणतायुक्त धारा है। इस धारा के द्वारा प्रति सेकण्ड 10 मिलियन घन मीटर जल ब्राजील तट के पास प्रवाहित होता है। विषुवत् रेखा की ओर से प्रवाहित होने वाली यह धारा अपने समीपवर्ती जलराशि से अधिक गर्म होती है।  द. अक्षांश तक चलने के उपरान्त यह धारा फाकलैंड की ठंडी धारा से मिल जाती है।

इस धारा के द्वारा प्रवाहित होने वाले जल की मात्रा गल्फ स्ट्रीम द्वारा प्रवाहित जलराशि की मात्रा का  होती है।  द. अक्षांश के निकट पछुवा पवन के प्रभाव तथा पृथ्वी के आवर्तन से उत्पन्न होने वाले विक्षेपक बल (Coriolis force) के कारण ब्राजील धारा अपनी बायीं ओर मुड़ कर पूरब दिशा में प्रवाहित होने लगती है।

फाकलेंड धारा (Falkland Current) – यह एक ठंडी धारा है जो अण्टार्कटिक सागर में उत्पन्न होकर दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट के सहारे उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है। इस धारा की उत्तरी सीमा  द. अक्षांश रेखा है। अपनी उत्तरी सीमा पर यह धारा ब्राजील धारा से मिलकर पछुवा हवा के प्रभाव से पूरब की ओर प्रवाहित होती है। इस सम्मिलित धारा को पछुवा पवन प्रवाह (West Atlantic Drift) कहते हैं। इस सम्मिलित धारा में अर्जेन्टाइना के पूरबी तट के समीप महासागर में ठंडे जल के उत्प्रवाह (upwelling) से प्राप्त होने वाला जल भी मिल जाता है। महासागर की गहराइयों से होने वाले शीतल जल के उत्प्रवाह का मूल कारण ब्राजील धारा के पृष्ठीय उष्ण जल (warm surface water) का पछुवा पवन के कारण उत्पन्न पूर्व दिशा की ओर विस्थापन माना जाता है। इस शीतल जलधारा के सतह का तापमान अत्यधिक न्यून तथा लवणता भी बहुत कम होती है। अन्टार्कटिक के तटवर्ती क्षेत्रों से बहाकर प्लावी हिमशैल भी इस धारा के द्वारा लाए जाते है।

समुद्र वैज्ञानिकों के मतानुसार, दक्षिणी अटलान्टिक धारा वास्तव में ब्राजील गर्म जलधारा एवं फाकलैंड धारा का ही क्रमशः पूरब तथा उत्तर-पूरब की ओर विस्तार है। ज्ञातव्य है कि दक्षिणी गोलार्द्ध में समुद्री धारायें अपने पथ पर अग्रसर होते हुए उसके बायीं ओर मुड़ जाती हैं जिसका मूल कारण पृथ्वी के आवर्तन से उत्पन्न विक्षेपक बल (Coriolis Force) होता है। जैसा कि पाठकों को विदित है,  तथा  द. अक्षांश के बीच पछुवा पवन अत्यधिक वेग से प्रवाहित होता है। इसी पेटी में स्थल खण्डों के अभाव के कारण अत्यधिक तीव्र एवं अबाध गति से प्रवाहित होने वाली पछुवा पवनों को समुद्री यात्रियों ने उनके अक्षांशों के अनुसार क्रमशः गरजने वाली चालीसा (Roaring Forties) क्रुद्ध पचासा (Furious Fifties), तथा चीखने वाली साठा (Shricking Sixties) जैसे नाम दिये। इन वेगगामी पवनों से उत्पन्न प्रतिबल (stress) के कारण धाराओं का प्रवाह पश्चिम से पूरब की ओर होता है। स्मरण रहे कि अन्टार्कटिक मध्यवर्ती जल-राशि की उपस्थिति के कारण दक्षिणी अटलांटिक समुद्री धारा अपेक्षाकृत उथली होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध के उपर्युक्त अक्षांशों में जल की प्रधानता के कारण दक्षिणी अटलांटिक धारा अविच्छित्र रुप से चला करती है। (चित्र 12.1)।

इस धारा की एक शाखा दक्षिणी अटलांटिक महासागर से पश्चिमी

चित्र 12.1 अटलांटिक महासागर की धारायें।

अफ्रीका के तट की ओर 15 समुद्री मील (nautical miles) प्रतिदिन की रफ्तार से चला करती है।
दक्षिणी अटलान्टिक धारा (South Atlantic Current) – यह पछुवा पवन की पेटी में पश्चिम से पूरब की ओर दक्षिणी अटलान्टिक महासागर के पूर्वी तट की ओर प्रवाहित होने वाली ठंडी धारा होती है। इस धारा को दक्षिणी अटलान्टिक धारा अथवा पछुवा पवन प्रवाह (West Wind Drift) कहा जाता है। इसके द्वारा दक्षिणी अटलान्टिक महासागर में पायी जाने वाली प्रतिघटीवत् जल संचार प्रणाली (anticlockwise circulation) पूरी हो जाती है

बेंग्युला धारा (Benguela current) – अफ्रीका के पश्चिमी तट के समानान्तर उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली ठंडी धारा को बेंग्युला धारा के नाम से जाना जाता है। उत्तमाशा अन्तरीप (Cape of Good Hope) तथा  द. अक्षांश के मध्य यह धारा पूर्णतया विकसित रूप में प्रवाहित होती है। अफ्रीका तट के समीप ठण्डा महासागरीय जल नीचे से उठ कर सतह तक आता है जिसके मिलने से यह धारा अधिक ठंडी हो जाती है। इस धारा के द्वारा प्रति सेकण्ड 16 मिलियन घन मीटर जल दक्षिण से उत्तर की ओर लाया जाता है।  द. अक्षांश को पार करने पर यह धारा तट से दूर हट कर प्रवाहित होती है और आगे जाकर दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा में मिल जाती है। इस धारा के कारण भूमध्य रेखा तक ठण्डी जलराशि का प्रसार हो जाता है। स्मरण रहे कि इस धारा द्वारा प्रवाहित जल की मात्रा ब्राजील धारा का अपेक्षा अधिक होती है।

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